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Life Story |
डॉक्टर सैयद हसन एक इंसान दोस्त एक परिचय:-
आज से लगभग 10 दशक पहले जहानाबाद के एक जमींदार के घर पर शादी की खुशी का अवसर था/ दुल्हन सभी काम करने के बाद शादी का जोड़ा पहन कर बैठ गई/ अचानक शोर उठा ,पता चला कि बारात को रास्ते में रोककर दूल्हे को उठा लिया गया है और किसी दूसरी लड़की से शादी रचा दी गई है /जमींदार घर के सम्मान को बचाने के लिए सभी लोगों ने यह तय किया कि दावत खाने आए अतिथियों में से एक्साइज इंस्पेक्टर श्री अब्दुल हफीज से विवाह उसी समय पर किया जाए और ऐसा ही किया गया /यह परिवार अपने समय का बहुत ही शिक्षित परिवार था /अरबी फारसी और गणित का जानकार /अब्दुल हफीज अपनी पत्नी बीवी जैतून को विवाह के उपरांत अपने घर जिला नालंदा गांव बैठाना ले आए /आप बहुत ही नेक अच्छे और धार्मिक व्यक्ति थे आप की धर्मपत्नी बहुत बुद्धिमान थी ,शेर-ओ-शायरी अरबी ,फारसी में बहुत ही निपुण थी /अपनी छोटी बहन शहरुन्निसा, नूरुल हुदा ,एैनुलहुदा व बदरूल होदा की लाडली थी /बीबी जैतून सर सैयद अहमद खान और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शैक्षणिक आंदोलन से इतनी प्रभावित थी कि उन्होंने अपने बेटे का नाम सैयद अहमद रखा/ लेकिन ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था कि उनका स्वर्गवास हो गया/ 30 सितंबर 1924 आपको एक और बेटा हुआ परंतु सर सैयद से प्रभावित होने के कारण आपने अपने दूसरे बेटे का नाम सैयद हसन रखा जो अपने समय के शैक्षणिक आंदोलन को बढ़ावा देने वाला बना /उसके बाद आपको एक बेटी फ़हमीदा और चार बेटे मोहम्मद शीस, अब्दुल हसीब ,शफीक नइयर और मोहम्मद इकबाल हुए /वर्ष 1934 में अच्छी शिक्षा के लिए आपके पिता आपको जामिया मिल्लिया दिल्ली ले गए और आपका प्रवेश कक्षा 5 में कराया/ आप शारीरिक रूप से बहुत ही दुर्बल थे /बहती आंख ,कमजोर शरीर ,हर समय रोने वाला और अत्यंत साधारण बुद्धि वाला बालक/ परंतु इसी साधारण बालक को शिक्षकों ने अपने परिश्रम से असाधारण बना दिया /इस बालक ने केवल एक काम पूरी निष्ठा से किया और वह था अपने शिक्षकों एवं माता पिता की बात मानना /उस समय जिन शिक्षकों ने उसे दुर्लभ बनाया वह थे ,डॉ जाकिर हुसैन, प्रोफेसर मुजीबुर्रहमान ,मुजतबा हुसैन जैदी ,आबिद हुसैन ,गफ्फार मद होली ,अख्तर अली ,ख्वाजा अब्दुल हई ,मौलाना असलम जय राजपुरी, बरकत अली /उस समय जामिया स्वतंत्रता के मतवालों का गढ हुआ करता था जहां स्वतंत्रता संग्राम के बड़े-बड़े नेता बैठक करते और जवानों को जोश दिलाते /महात्मा गांधी ,पंडित जवाहरलाल नेहरु, अल्लामा इकबाल और मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि नेताओं से मिलने और उनसे सीखने एवं उनकी सेवा करने का अवसर मिलता रहा/ स्वतंत्रता के कामों को पूरा करने के लिए जवानों को तैयार करते तो आप इन में बढ़-चढ़कर भाग लेते चाहे भारत छोड़ो आंदोलन हो या देश बंटवारे के बाद रिफ्यूजियों के देखरेख करने का प्रबंधन /उस समय उन पर अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार एवं प्रथम एवं द्वितीय विश्वयुद्ध के दुष्प्रभावों का बड़ा ही प्रभाव हुआ /छठी कक्षा में उन्होंने एक पाठ जिसमें जापानी लोगों की अपने देश से प्यार को पढ़ा और इसका ऐसा प्रभाव हुआ कि उन्होंने देश के लिए काम करने का वचन दिया/ जामिया से स्नातक करने के पश्चात आपने मद्रास के वाईएमसीए कॉलेज से फिजिकल एजुकेशन में डिप्लोमा किया /इसके पश्चात आपने जामिया में एक शिक्षक एवं एक प्रधान अध्यापक के रूप में सेवा दी /सन 1947 में हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद बहुत सारे फ्यूजी नई दिल्ली मैं आश्रित हुए/ लगभग डेढ़ लाख रिफ्यूजी के देखभाल का दायित्व जामिया ने आपको दिया/ जामिया ने आपको स्वतंत्रता के बाद प्रथम एवं द्वितीय गणतंत्र दिवस अर्थात 1950 और 1951 की झांकी का दायित्व भी आपको मिला/ हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बटवारे के पश्चात जामिया में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे पाकिस्तान चले गए तो जामिया को चिंता हुई, सैयद हसन को निर्देश दिया गया कि आप बिहार के हैं तो बिहार जाइए और उन क्षेत्रों में जहां उर्दू बोलने वाले और मुसलमान लोग हो /इसी कारण आप 1951 में किशनगंज आए मीलों दूर तक बैलगाड़ी या पैदल यात्रा की/ खेतों नदियों और बड़े-बड़े वृक्षों के बीच होते हुए जहां तक हो सका आपने लोगों को शिक्षा के महत्व और पढ़ने पढ़ाने के लाभ को बताया /उस समय साक्षरता दर बहुत ही कम थी आप कुछ लोगों को तो तैयार कर सके कि जामिया में शिक्षा पाएं/ उसी समय उन्होंने पक्का इरादा किया कि मैं इस क्षेत्र में यहां के लोगों के लिए ऐसी संस्था बनाऊंगा जिससे लोग यहीं रहकर प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करें और बाद में उच्चतर शिक्षा के लिए जब बाहरी दुनिया में जाएं तो इस दुनिया से अनजान ना हो ,और ऐसे नौजवान तैयार करूंगा जो जिस जगह भी रहे, जो काम भी करें लेकिन अपने देश का नाम रोशन करें /1954 में जामिया ने अपने इस गुणवान विद्यार्थी को उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका भेजा /उस समय आपने पानी के जहाज से 1 महीने की यात्रा की और अमेरिका पहुंचे/ वह काल अमेरिका में काले और गोरे के अंतर का था /अमेरिका में आपने राष्ट्रपति जॉन केनेडी के भाषण को सुना और देश प्रेम की भावना और बढ़ गई /आपने सावदरन एलायन्स यूनिवर्सिटी कारबंडेल से एम ए किया और बाद में पीएचडी की/ जिसमें आप के विषय शिक्षा और मनोविज्ञान थे /आपने फ्रॉस्ट वर्ग स्टेट विश्वविद्यालय मैं असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में सेवा दी और इंस्ट्रक्टर ऑफ द ईयर ,वर्ष का सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का अवार्ड 1964 ही में अमेरिका में प्राप्त किया /आपके अमेरिकी शिक्षकों में डॉक्टर स्केनर ,डॉक्टर ऐड वर्ल्ड, डॉक्टर आर्थो ,डॉक्टर क्लेरेंस आदि हैं /आप अपने कमाई का कुल पैसा हर महीने निर्धनों और गरीब रिश्तेदारों को बांट देते थे /आप ने सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का अवार्ड मिलने के पश्चात 1964 में अपने सबसे पहले इंटरव्यू में अपने देश लौट कर देशभक्त नौजवानों को तैयार करने की बात कही /1964 में जब आप भारत वापस आए तो बिना किसी इलेक्ट्रॉनिक सामान के आप अपने साथ 7 बक्से किताब लेकर आए जिसे वह अपनी कुल पूंजी समझते थे/ 1965 के प्रारंभ में ही आप सीधे किशनगंज आए /आपने पूरे क्षेत्र का दौरा किया ,लोगों से मिले ,सलाह ली ,हालात की जानकारी ली /उस समय लोगों ने देखा के अमेरिकी कोर्ट में एक सुंदर नौजवान कीचड़ और धूल में चला जाता है /आठ -आठ दिनों तक अपनी धुन में मगन/ उस समय आपने नेशनल उच्च विद्यालय के बनने में सहायता की /आपके छोटे भाई मोहम्मद शीश साहब ने इसका चित्र बनाया/ आपने स्वयं कुदाल और फावड़े से इस में काम किया /नेहरू कॉलेज बहादुरगंज में आपको प्रथम प्राचार्य बनाया गया ताकि नामांकन अधिक हो सके /आप किशनगंज की मस्जिदों में जाते नमाज पढ़ने वाले बच्चों का मुंह हाथ धुलाते और इमाम साहब से आज्ञा लेकर वही पढ़ाते /14 नवंबर 1966 को उन्होंने इंसान स्कूल के नाम से पूरे क्षेत्र के पहले निजी विद्यालय की बुनियाद डाली /जिसमें 36 स्थानीय छात्रों से जिनमें स्वयं उनका अपना बेटा भी था इसे आरंभ किया /धीरे-धीरे विद्यालय उन्नति करता गया /पहले दिन से इसकी कठिनाइयां और इसका विरोध करना अारम्भ था /लोग शक की निगाह से देखते/ अमेरिकी जासूस ,बांग्लादेशी जासूस और ना जाने कैसे-कैसे शक जो धीरे-धीरे समाप्त हुए/ विद्यालय बंद कराने और शिक्षा तंत्र को समाप्त करने के लिए ना जाने कितनी बार आग लगाई गई/ जान से मारने की धमकी घर को आग लगाई गई/ लेकिन विद्यालय आगे बढ़ता रहा और 1980 में इंसान कॉलेज की बुनियाद डाली /स्कूल और कॉलेज के अतिरिक्त उन्होंने किशनगंज और उसके आस-पास के क्षेत्रों के लिए बहुत से सामाजिक काम किए /उन्होंने इंसान अडल्ट स्कूल के नाम से 600 प्रौढ़ शिक्षा के केंद्र स्थापित किए अर्थात इंसान स्कूल के 600 विद्यालय जिनमें वह लोग पढ़ेंगे जो बड़ी उम्र के कारण शिक्षा से दूर है /और यह सभी केंद्र बिना सरकारी मदद के इंसान स्कूल के द्वारा अपने खर्चे पर स्थापित एवं संचालित थे /उन्होंने शिक्षा नगर नाम से एक बस्ती बसाई /जिसमें एक आदर्श समाज की कल्पना दी/ उन्होंने निर्धन बूढ़े को रोजगार दिया/ घास और बांस को खरीदा और उनको बनाने के लिए लोगों को काम में लगाया/ 2,000 से अधिक पागलों का निशुल्क इलाज किया/ शादी ब्याह में निशुल्क कपड़ा ,फर्नीचर और खाना खिलाने वाले लोग दिए /शिक्षक को भाई और बाजी कहलवाया /जिसका प्रभाव ऐसा पड़ा के लोग क्षेत्र में और दूर-दूर तक एक दूसरे को भाई और बाजी कहने लगे/ विद्यालयों में नई शिक्षा नीति को जगह मिली /आप किशनगंज में प्रमाण पत्र वाले नहीं गुण वाले शिक्षित बनाना चाहते थे /आपने इंसान प्राथमिक विद्यालय ,इंसान उच्च विद्यालय, इंसान गर्ल्स स्कूल ,इंसान इंटर कॉलेज, इंसान डिग्री कॉलेज और इंसान कॉलेज ऑफ एजुकेशन की बुनियाद डाली और आजीवन इसके निदेशक रहे /आप को मार्च 1991 में भारत सरकार की ओर से पदम श्री से सम्मानित किया गया /2003 में आप नोबेल प्राइज के लिए भी नामांकित हुए/ इसके अतिरिक्त आपको नेहरू लिटरेसी अवार्ड एवं दर्जनों देशी और विदेशी अवार्ड मिलते रहे /आप हमेशा कहते थे कि मैं अवार्ड लेने नहीं बल्कि किशनगंज के लोगों को अवार्ड दिलवाने आया हूं/ आप 10 वर्षो तक केंद्र की सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन के सदस्य रहे/ इसके अतिरिक्त बहुत सी केंद्रीय शिक्षा कमेटियों में भी सदस्य रहे /आप छोटे छोटे लेख लिखते ताकि लोग आसानी से और कम समय में पढ़ ले/ आपके लेखों में विशेष हैं, सहारा सहारा सहारा ,पढ़े लिखे लोगों से, तालिब ए इल्मी के तकाजे ,किशनगंज की आवाज ,किशनगंज एक बढता जिला ,तालीम में काम ,खिलौने खिलौने खिलौने ,समाजी मसाइल का हल तालीम ,में हमको इंसान बनना है ,हम बच्चे इंसान के ,बिहार में बहार हो ,इंसान और इंसानियत इत्यादि /25 जनवरी 2016 को प्रातः 3:00 बजे यह इंसान दोस्त और किशनगंज और बिहार का सच्चा चाहने 9वाला अपने असल मालिक से जा मिला/ आग की तरह फैली यह खबर सबको ऐसी लगी जैसे यह जनाजा उसके अपने घर का हो /किशनगंज और आसपास के लोगों का प्यार बहुत बड़े हुजूम और भीड़ के रूप में सामने आया/ मातृभूमि के सपूत को गणतंत्र दिवस के दिन उनकी कर्मभूमि स्कूल के विद्यालय में ही दफन कर दिया गया l
(शिफा सैयद हफीज भाई के कलम से )